जिस गुलदान को तुम आज अपना केहते हो , उसका फूल एक दिन हमारा भी था ,
वो जो अब तुम उसके मुक्तार हो तो सून लो ,
उसे अच्छा नही लगता ,
मेरी जान के हक़दार हो तो सुन लो ,
उसे अच्छा नहीं लगता !
वो जो अब तुम उसके मुख्तार हो तो सुन लो ,
उसे अच्छा नहीं लगता ,
मेरी जान के हक़दार हो तो सुन लो ,
उसे अच्छा नहीं लगता ,
की वो जो ज़ुल्फ़ बिखेरे तो बिख़िरी ना समझना ,
अगर माथे पे आ जाए तोह बेफिक्रि ना समझना ,
दरअसल उसे ऐसे ही पसंद है ,
उसकी आज़ादी , उसकी खुली ज़ुल्फ़ों में बंद है !
जानते हो ,
जानते हो वो अगर हज़ार बार जुल्फें ना सवारे तोह उसका गुज़ारा नहीं होता ,
वैसे दिल बोहोत साफ़ है उसका इन् हरकतों में कोई इशारा नहीं होता .
खुदा के वास्ते , खुदा के वास्ते उसे कभी रोक ना देना ,
उसकी आज़ादी से उसी कभी टोक ना देना ,
अब मैं नहीं तुम उसके दिलदार हो तोह सुन लो ,
उसे अच्छा नहीं लगता.!!
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